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प्रकृति के साथ जीना सीखिए

प्रकृति के साथ जीना सीखिए

छैः ऋतुओं वाला है देश हमारा
देता आ रहा है मानव जीवन को सहारा
परंतु उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण
प्रदुषित हो रहा है देश में पर्यावरण
मानव जीवन के अस्तित्व को बचाए रखने
प्रकृति के साथ जीना सीखिए।
आज सावन के मौसम से छाई हुई है
कितना प्यारा चहुओर हरियाली
प्रकृति की इस अनुपम छटा देख
झुमनें लगता हैं हर मानव का मन।
पर क्या सुनाऊं मैं,आने वाले पल की कहानी
हरे भरे लहलहाते हुए पेड़ काटे जा रहे है अंधाधुंध
कहीं खो न दे हम इनकी पहचान
प्रकृति के साथ जीना सीखिए।
इतिहास गवाह है पर्वत चट्टानें
कभी रोया नही करते है 
इस धरती की कोख में रहकर हर पल
फ़ौलाद बन सब सहतें है।
आज पर्वतें काटी जा रही है
झरणें जहां गुणगुनातें है
रास्ता बनाने के नाम पर नही लांघे लक्ष्मण रेखा
प्रकृति के साथ जीना सीखिए।

नूतन लाल साहू नवीन

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1 Comments

Gunjan Kamal

28-Jul-2023 08:22 AM

बहुत खूब

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